पूजा की माला के मोती लेखनी प्रतियोगिता -31-Jul-2022
," मम्मी आज इतने दिन बाद मामा किस लिए आये थे? आज इतने दिन बाद उनको आपकी याद कैसे आगयी?" सुरभि ने अपनी माँ से पूछा।
"वह आये तो है तेरे चाचा ने तो तेरे पापा की मौत के बाद यह भी नही पूछा कि हम जिन्दा है अथवा मर गये है?" सुमित्रा ताना देते हुए बोली।
"मम्मी सब मतलब होता है तभी आते है। वह मामा हो अथवा चाचा ,? चाचा को भी मालूम है कि इनके पास है ही क्या जिसके लिए वह यहाँ आते। यदि वह आयेगै तो हमारी हालत देखकर कुछ तो करना पड़ सकता है। इहलिए वह डर के कारण हाल पूछने भी नहीं आते। परन्तु आज मामा कैसे रास्ता भूल गये। "\', सुरभि ने पुनः अपना प्रश्न दुहराया।
"वह किसी कागज पर सही कराकर लेगया है।" सुमित्रा ने जबाब दिया।
"मम्मी आपने कागज पर हस्ताक्षर करने से पहले पढ़ तो लिया होगा।", सुरभि ने पूछा।
"नहीं मैने नही पढा़ था । बैसे भी पढकर क्या करती थी हमारे पास है ही क्या जिसे कोई अपने नाम करवा लेगा। कोई सम्पत्ति नहीं है किराये के मकान में रह रहे है बैक मे कोई बैलैन्श नही है किसका डर है तुझे ?", सुमित्रा बोली।
" नहीं मम्मी कुछ नही वह तो ठीक है लेकिन फिरभी किसी पेपर पर अपने हस्ताक्षर करने से पहले उसको पढ़ना चाहिए था। कोई न कोई उनकी चाल होगी। वह गिद्ध है उनकी नजर बहुत दूर की सोचती है। आप यह सब नही समझती हो।" सुरभि अपनी मम्मा को समझाते हुए बोली।
" देख बेटा हमें तेरे मामा ने कुछ तो सहारा दिया ही था। अफसरौ से बात करके यह सिलाई मशीन उसने ही दिलवाई थी अब इस सिलाई की मशीन ही अपना सहारा है। चाचा चाची तो यह भी पूछने नही आये कि भाभी कैसे रह रही है। तू इन बातौ पर ध्यान मत दिया कर अपनी पढा़ई से मतलब रख।", सुमित्रा बेटी को समझाते हुए बोली।
सुरभि के पापा हरीश दो भाई थे छोटे का नाम महेश है दोनौ अलग आलग रहते थे। हरीश की एक प्राईवेट नौकरी थी उसीसे घर का खर्च चलता था। वह किराये के मकान में रहते थे।
हरीश के पिता की बचपन में मौत होगयी थी। महेश को भी हरीश ने ही पढाया था और वह अब सरकारी बैंक मे लगा हुआ था। महेश की शादी होते ही वह हरीश को अकेला छोड़कर अलग रहने लगा था। इससे हरीश को बहुत दुःख हुआ था।
इसी चिन्ता में हरीश टैन्सन का शिकार होगया। सुमित्रा हरीश को बहुत समझाती थी परन्तु इसी टैन्शन में एक दिन हरीश सुमित्रा व अपनी बेटी को अकेला छोड़ बहुत दूर चलागया जहाँ से आजतक कोई बापिस नहीं आया है।
महेश ने केवल तेरह दिन तक अपनी भाभी का साथ दिया और उसके बाद आजतक उनका हाल पूछने नही आया था। सुमित्रा के दो भाई थे भाईयौ ने ही कुछ सहारा अवश्य दिया था।
लेकिन सुरभि अपने चाचा व मामा दोनौ से ही दूर होती चली गयी थी क्यौकि उसके मामा भी कभी कभी ही आते थे।
उसके दोंनौ मामा रक्षाबन्धन पर राखी बंधवाने अवश्य आते थे। इस बार भी कल रक्षाबन्धन है और सुमित्रा को अपने भाईयौ की प्रतीक्षा थी उसने आज अभी तक कुछ नहीं खाया था।
"मम्मी अब ग्यारह बज गये है मामा अब नहीं आने वाले है क्यौकि पिछली बार वह आपसे पेपरौ पर हस्ताक्षर करवा लेगये। अब वह आने वाले हैं आप कुछ खालीजिए।", सुरभि बोली।
"बेटी तू यह क्या अनाप शनाप बिना सोचे समझे ही बोले जारही है उन पेपरौ का राखी से क्या सम्बन्ध है ?"सुमित्रा ने बेटी से पूछा।
"जब तक पेपर पर साइन नही हुए थे तबतक तो दोंनौ मामा सुबह ही सुबह आजाते थे परन्तु आज नहीं आये अब आप ही सोचलो कि पेपरौ से क्या सम्बन्ध है ?" बेटी ने जबाब दिया।
जब माँ बेटी में बहस चल रही थी तभी कालबैल बजी और जैसे ही सुरभि ने दरवाजा खोला दोनौ मामा सामने खडे़ थे उनके हाथ दो लिफाफे थे।
अन्दर आते ही सुरभि ने प्रश्न करदिया ," मामा उस दिन आपने मम्मी से कौनसे पेपरौ पर हस्ताक्षर करवाये थे।"
बडा़ मामा बोला," तेरे नाना ने एक प्लाट लिया था उसमें तेरी मम्मी का भी नाम था। उसको ठीक करवाना था। "
मामा का जबाब सुनकर सुरभि को धक्का लगा और वह सोचने लगी तो यह बात थी मम्मी को कांटे की तरह बाहर करना था।
सुमित्रा ने दोनौ भाईयौ के राखी बांधी और भाई ने एक लिफाफा दिया और बोला ," दीदी यह आपका गिफ्ट है। छुटकी तू किस सोच में पड़गयी राखी तो बांधदे। देर होरही है तेरी मामा को उसके भाई के पास लेजाना है।"
सुरभि ने बिना मन के राखी बांधकर उनका मुँह मीठा करवाया। तब उसका मामा उसको स्कूटी की चाबी देते हुए बोला " यह तेरा गिफ्ट है। "
सुरभि ने चाबी तो लेली लेकिन उसको अभी भी उसका मन कुछ और ही सोच रहा था। मामाऔ को जाते ही सुरभि ने मम्मा का लिफाफा खोला तो उसमें कपडे़ और एक लिफाफा और उसके अन्दर था।
सुरभि ने जब दूसरा लिफाफा खोला तब उसमें एक चिट लगी हुई थी जिस फर लिखा था," दीदी आपको आजका राखी का गिफ्ट मुबारक हो। मै गाडी़ भेज रहा हूँ उसमें अपना सब सामान लेकर अपने नये मकान मे पहुँचो हम भी वहीं मिलैगे। यह मकान उसी उसी प्लाट पर है जिस पर पिताजी ने आपका नाम भी दिया था वह अब आपका है हम दोनौ ने मिलकर उस पर आपके रहने के लिए मकान बनवा दिया है। कैसा लगा राखी का गिफ्ट ? छुटकी पूछ रही थी उस दिन पेपर पर क्यौ हस्ताक्षर करवाये थे। तो बिना आपके हस्ताक्षर के यह आपके नाम कैसे होजाता। हमारी त्रुटियौ पर ध्यान मत देना।
अब सुरभि की आँखौ से भी खुशी के आँसू निकल आये। सुमित्रा ने पूछा क्या हुआ रो क्यौ रही है। तब उसने अपनी मम्मी को वहसब बताकर वह कागज माँ को देदिये।
सुमित्रा बेटी को समझाते हूए बोली बेटी तू और तेरे दोनौ मामा मेरी पूजा की माला के मोती हो। मै जानती हूँ कि वह दोनौ मुझे कभी धोका नही देसकते है। अबतो तेरी समझ मे भी आगया होगाकि मैने पेपर कैसे बिना पढे ही साइन कर दिए थे।
आज दोनौ माँबेटी बहुत खुश थी क्यौकि मामा ने उनको किराये के मकान से अपने मकान में पहुँचाया था। उन दोनौ ने फौन करके उनका धन्यवाद किया।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
31/07/२०२२
Khan
03-Aug-2022 05:08 PM
Osm
Reply
Saba Rahman
03-Aug-2022 11:56 AM
Nice
Reply
Chudhary
02-Aug-2022 09:37 PM
Nice
Reply